1963 में एक्टिविस्ट बेयार्ड रसटिन, वॉशिंगटन मार्च के ज़रिए नागरिक अधिकार के इतिहास का रुख बदलने की कोशिश करते हैं, पर उन्हें नस्लवाद और होमोफ़ोबिया का सामना करना पड़ता है.